


ईरान की इस्लामी क्रांति से करीब साल भर पहले की बात है। 1978 में तब शाह पहलवी का राज था, जिनके खिलाफ विद्रोह को हवा दे रहे थे इस्लामी क्रांति के अगुवा अयातोल्लाह खोमैनी। उस वक्त ईरान के सरकारी अखबार में खोमैनी को ईरान सरकार ने 'भारतीय मुल्ला' और 'ब्रिटेन का एजेंट' लिखा गया। उन्हें ' इश्कमिजाजी गजलों में खोया रहने वाला बूढ़ा' तक कहा गया। इस लेख के छपने के बाद ईरान की जनता भड़क गई। 1979 को ईरान में इस्लामी क्रांति हुई। नतीजतन ईरान को एक इस्लामिक गणराज्य घोषित कर दिया गया था। इस क्रांति को फ्रांसीसी क्रांति और रूस की बोल्शेविक क्रांति के बाद विश्व की सबसे महान क्रांति कहा जाता है। इसके कारण पहलवी वंश का अंत हो गया था और अयातोल्लाह खोमैनी ईरान के सुप्रीम लीडर बने थे। बताया जा रहा है कि ईरान के मौजूदा सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई की हत्या के लिए इजरायल प्लान बना रहाहै। कहा जा रहा है कि इस काम को उसकी खुफिया एजेंसी मोसाद अंजाम दे सकती है।
कौन थे अयातोल्लाह खोमैनी, बाराबंकी से क्या है नाता
अयातोल्लाह खोमेनी के दादा सैयद अहमद मसूवी उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के रहने वाले थे। 1830 के दशक में अवध के नवाब के साथ वह एक धार्मिक यात्रा पर इराक गए। वहां से वह ईरान के खुमैन गांव में बस गए। इसलिए एक पीढ़ी बाद उनका सरनेम खोमैनी हो गया।
कैसे एक चौराहे पर जमा हो गए थे 20 लाख लोग
दिसंबर, 1978 में कोई 20 लाख लोग शाह के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने शाहयाद चौक पर जमा हुए। हालांकि, इस बार शाह की सेना ने उनपर कार्रवाई करने से इनकार कर दिया। फिर प्रधानमंत्री डॉ शापोर बख़्तियार की मांग पर 16 जनवरी, 1979 को शाह और उनकी बेगम ईरान छोड़कर चले गए। प्रधानमंत्री ने सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा कर दिया और खोमैनी को ईरान आने दिया। प्रधानमंत्री चुनाव कराना चाहते थे लेकिन खोमैनी ने उनकी एक न चलने दी और खुद ही एक अंतरिम सरकार का गठन कर लिया।